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परि॒ विश्वा॑नि॒ सुधि॑ता॒ग्नेर॑श्याम॒ मन्म॑भिः। विप्रा॑सो जा॒तवे॑दसः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari viśvāni sudhitāgner aśyāma manmabhiḥ | viprāso jātavedasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। विश्वा॑नि। सुऽधि॑ता। अ॒ग्नेः। अ॒श्या॒म॒। मन्म॑ऽभिः। विप्रा॑सः। जा॒तऽवे॑दसः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:11» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (जातवेदसः) विद्वान् हुए (विप्रासः) बुद्धिमान् हम लोग (मन्मभिः) विज्ञान विशेषों के सहित (अग्नेः) अग्नि के सदृश (विश्वानि) सम्पूर्ण (सुधिता) उत्तम प्रकार धारण किये शास्त्रों को (परि) सब ओर से (अश्याम) प्राप्त हों, वैसे ही आप लोग भी प्राप्त हूजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्यों को चाहिये कि जैसे बुद्धिमान् विद्वान् सृष्टि और आत्मा की विद्या ग्रहण के लिये प्रयत्न करते हैं, वैसे ही विद्यावृद्धि के लिये प्रयत्न करें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा जातवेदसो विप्रासो वयं मन्मभिरग्नेर्विश्वानि सुधिता पर्यश्याम तथैव यूयमपि प्राप्नुत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परि) सर्वतः (विश्वानि) सर्वाणि (सुधिता) सुष्ठु धृतानि (अग्नेः) पावकस्येव (अश्याम) प्राप्नुयाम (मन्मभिः) विज्ञानविशेषैः सह (विप्रासः) मेधाविनः (जातवेदसः) जातविद्या विद्वांसः सन्तः ॥८॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्मनुष्यैर्यथा मेधाविनो सृष्ट्यात्मनोर्विद्याग्रहणाय प्रयतन्ते तथैव विद्योन्नतये प्रयतितव्यम् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे बुद्धिमान विद्वान सृष्टी व आत्म्याची विद्या ग्रहण करण्यासाठी प्रयत्न करतात तसा विद्वान माणसांनी विद्या बुद्धीसाठी प्रयत्न करावा. ॥ ८ ॥